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साथ चली तन्हाई / हरदीप कौर सन्धु

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<poem>
1.
उदास धुँध
अँधियारे -लिपटी
गुमनाम ज़िन्दगी,
ढूँढ रही है -
उजली किरणों की
रंगीन परछाई ।
2.
काते अकेला
विरह की पूनियाँ
मन-पीड़ा का चर्खा
छाया त्रिंजण
गुम है कहीं आज
हम ढूँढ़ न पाए ।
3.
बावरा मन
भटके वन-वन
साथ चली तन्हाई
खुद को ढूँढ़े
अनजान राहों में
खुद की परछाई ।
4
भावों की छाया
सारे कर्म हमारे
निर्मल-कलुषित,
हम पावन
तो धरा मधुबन
खिलते उपवन ।
-0-

</poem>