साथ चली तन्हाई / हरदीप कौर सन्धु
1.
उदास धुँध
अँधियारे -लिपटी
गुमनाम ज़िन्दगी,
ढूँढ रही है -
उजली किरणों की
रंगीन परछाई ।
2.
काते अकेला
विरह की पूनियाँ
मन-पीड़ा का चर्खा
छाया त्रिंजण
गुम है कहीं आज
हम ढूँढ़ न पाए ।
3.
बावरा मन
भटके वन-वन
साथ चली तन्हाई
खुद को ढूँढ़े
अनजान राहों में
खुद की परछाई ।
4
भावों की छाया
सारे कर्म हमारे
निर्मल-कलुषित,
हम पावन
तो धरा मधुबन
खिलते उपवन ।
5
दोनों नदियाँ
वादियों में पहुँची
बनती एक धारा
अश्रु बहते
छलकी ज्यों अँखियाँ
दु:ख सब कहतीं ।
6
पालने मुन्नी
माँ लोरियाँ सुनाए
मीठी निंदिया आए
यादों में सुने
लोरियाँ माँ का मन
दिखता बचपन ।
7
श्वेत व श्याम
दो रंग दिन–रात
अश्रु और मुस्कान,
साथ–दोनों का
यहाँ पल–पल का
खेलें एक आँगन ।
8
तेरी अँखियाँ
ज्यों ही रुकीं आकर
मन–दहलीज पे,
हुआ उजाला
जगमगाए दीए
मेरे मन–आँगन ।