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के दिल के ज़ख़्मों का भंवर, दिखा रहा है रहगुज़र,
है मंजिलों मंज़िलों पे जब नज़र, शुरू करूँ न क्यों सफ़र,
निगाह गर उठा दूँ मैं, जहां को जगमगा दूं मैं,
फ़लक से मेहर-ओ-माह को ज़मीन पर उतार दूँ।</poem>
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