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08:24, 30 मई 2022 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार= रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
|संग्रह=
}}
[[Category:चोका]]
<poem>
साँझ हो गई
'''अनुरागी किरनें'''
कहीं खो गई,
'''बिखरे हैं कुंतल
घने तम-से'''
विचुम्बित गगन
तृष्णा मुखर
अतीत के वे स्वर
मौन हो गए
'''जीवन की तरंग
स्पर्श तुम्हारा'''
पुकार रस- भरी
मेरी उमंग
'''कण्ठ स्वाति बूँद को
कलपे बाट जोहे।'''
</poem>