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आशंका / शशि पाधा

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<poem>
इक दिन वो भी आएगा
देख पुरानी तस्वीरें जब
कोई पेड़ बूझ न पाएगा ।

पर्वत सजी चट्टानें होंगी
जंगल का कुछ पता नहीं
टूटेंगे जब सभी घोंसले
बाग़ बगीची लता नहीं

पुस्तक के इक पन्ने में
कोई पशु खड़ा मुस्काएगा
एक समय वो आएगा ।

हो जाएँगे तरुवर बौने
गमले में ही रैन बसेरा
न होगी तब ठंडी छैयाँ
ईंट -मीनारें डालें घेरा

पूछेगी धरती बादल से
मीत, बता कब आएगा
एक समय वो आएगा ।

ढूँढ खोजके रंग रूप तब
बच्चे चित्र बनाएँगे
पीपल बरगद देवदार सब
कथा पात्र हो जाएँगे

किसकी क्या परिभाषा होगी
कौन किसे बतलाएगा
एक समय वो आएगा ।
-0-
</poem>