भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
आशंका / शशि पाधा
Kavita Kosh से
इक दिन वो भी आएगा
देख पुरानी तस्वीरें जब
कोई पेड़ बूझ न पाएगा ।
पर्वत सजी चट्टानें होंगी
जंगल का कुछ पता नहीं
टूटेंगे जब सभी घोंसले
बाग़ बगीची लता नहीं
पुस्तक के इक पन्ने में
कोई पशु खड़ा मुस्काएगा
एक समय वो आएगा ।
हो जाएँगे तरुवर बौने
गमले में ही रैन बसेरा
न होगी तब ठंडी छैयाँ
ईंट -मीनारें डालें घेरा
पूछेगी धरती बादल से
मीत, बता कब आएगा
एक समय वो आएगा ।
ढूँढ खोजके रंग रूप तब
बच्चे चित्र बनाएँगे
पीपल बरगद देवदार सब
कथा पात्र हो जाएँगे
किसकी क्या परिभाषा होगी
कौन किसे बतलाएगा
एक समय वो आएगा ।
-0-