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{{KKRachna
|रचनाकार=प्रदीप त्रिपाठी
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
शहर बारिश में भीग रहा है
भीग रही है बारिश शहर में
और कवि टाँक रहे हैं
कविता में
अपने-अपने हिस्से के अनगिनत प्रेम।
प्रेम कविता में भी है
प्रेम शहर में भी है
प्रेम बारिश में भी
सच तो यह है
शहर, कविता और बारिश 'प्रेम' में हैं।
ऐसे में
भीग रहा है
अब कवि भी रफ़्ता-रफ़्ता
बारिश, शहर और प्रेम
तीनों में एक साथ
महज
एक कविता लिखने के लिए।
</poem>
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|अनुवादक=
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शहर बारिश में भीग रहा है
भीग रही है बारिश शहर में
और कवि टाँक रहे हैं
कविता में
अपने-अपने हिस्से के अनगिनत प्रेम।
प्रेम कविता में भी है
प्रेम शहर में भी है
प्रेम बारिश में भी
सच तो यह है
शहर, कविता और बारिश 'प्रेम' में हैं।
ऐसे में
भीग रहा है
अब कवि भी रफ़्ता-रफ़्ता
बारिश, शहर और प्रेम
तीनों में एक साथ
महज
एक कविता लिखने के लिए।
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