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भीगे हुए प्रेम में शहर / प्रदीप त्रिपाठी
Kavita Kosh से
शहर बारिश में भीग रहा है
भीग रही है बारिश शहर में
और कवि टाँक रहे हैं
कविता में
अपने-अपने हिस्से के अनगिनत प्रेम।
प्रेम कविता में भी है
प्रेम शहर में भी है
प्रेम बारिश में भी
सच तो यह है
शहर, कविता और बारिश 'प्रेम' में हैं।
ऐसे में
भीग रहा है
अब कवि भी रफ़्ता-रफ़्ता
बारिश, शहर और प्रेम
तीनों में एक साथ
महज
एक कविता लिखने के लिए।