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{{KKRachna
|रचनाकार= रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
|संग्रह=
}}
[[Category: ताँका]]
<poem>
1
कुछ न माँगा
दिनभर खटे थे
सूखी रोटियाँ
माँगी थीं साँझ ढले
धिक्कार मिली।
2
हदे होती हैं
प्यार-मनुहार की
तकरार की
बेशर्मी की न होता
ओर-छोर कोई भी।
'''(7-8-2011)'''
</poem>