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02:24, 14 नवम्बर 2022 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
|अनुवादक=
|संग्रह=दूधिया धूप
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<poem>
तुम्हें जाना था, तुम चल दोगे
पर याद तुम्हारी आएगी।
सोचेंगे अकेले में जब हम
तब जीभरके रुलाएगी।
बहती जाती है नदिया जो
पीछे न कभी वह मुड़ती है।
उसके दोनों किनारों से
गाथा हर बूँद की जुड़ती है।
कैसे थामेंगे दामन, जब
परछाई भी छल जाएगी।
पात झरे जब तरुवर के
फिर कौन मुसाफ़िर आता है।
जीवन का यह सूनापन
बीच कहीं खो जाता है।
ये आँखें बरसेंगी जीभर
जब नभ में बदली छाएगी।
(8-3-81)
</poem>