भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
याद तुम्हारी आएगी / रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
Kavita Kosh से
तुम्हें जाना था, तुम चल दोगे
पर याद तुम्हारी आएगी।
सोचेंगे अकेले में जब हम
तब जीभरके रुलाएगी।
बहती जाती है नदिया जो
पीछे न कभी वह मुड़ती है।
उसके दोनों किनारों से
गाथा हर बूँद की जुड़ती है।
कैसे थामेंगे दामन, जब
परछाई भी छल जाएगी।
पात झरे जब तरुवर के
फिर कौन मुसाफ़िर आता है।
जीवन का यह सूनापन
बीच कहीं खो जाता है।
ये आँखें बरसेंगी जीभर
जब नभ में बदली छाएगी।
(8-3-81)