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{{KKRachna
|रचनाकार=रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
|अनुवादक=
|संग्रह=भोर के अधर
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<poem>
लेता रहूँगा मैं जन्म बार-बार
तुम्हें पाने को।

बर्फ़ीली चोटियों से परे
हरे-भरे मैदानों में
भटकता रहूँगा वादियों के पार
तुम्हें पाने को।

चाँद के आँसू न थमते
और न सूरज की जलन
टूट जाते हैं हृदय के तार
तुम्हें पाने को।

गुलाबों के शरमाए होंठ
रोज उतर आते नीचे
लेकर मुट्ठी भर सिसकता प्यार
तुम्हें पाने को।
'''(23-3-84)'''
</poem>