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सपनों में तुम आते हो / डी .एम. मिश्र
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10:51, 15 दिसम्बर 2022
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सपनों में तुम आते हो
लेकिन फिर खो जाते हो
बादल बनकर छाते हो
बिन बरसे उड़ जाते हो
कैसे मुझको नींद पड़े
ख़्वाबों में आ जाते हो
तुमसे बात नहीं करनी
क्यों इतना तड़पाते हो
आंखें लोग गड़ाये हैं
छत पर किंतु बुलाते हो
तुम ही घायल भी करते
मरहम तुम्हीं लगाते हो
मुझको बुद्धू समझ रहे
झूठे ख़्वाब दिखाते हो
</poem>
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