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|रचनाकार=रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
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<poem>
पर्वत के शिखरों पर उतरी
तुम सर्दी की धूप
परस तुम्हारा पाकर निखरा
शीतल हिम का रूप।
शुभ्र चाँदनी तुम आँगन की
हँसते तुमसे द्वार ।
तरुवर की तुम लता सुहानी
लिपटी बनकर प्यार ।
</poem>