भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तुम सर्दी की धूप! / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

पर्वत के शिखरों पर उतरी
तुम सर्दी की धूप
परस तुम्हारा पाकर निखरा
शीतल हिम का रूप।
शुभ्र चाँदनी तुम आँगन की
हँसते तुमसे द्वार ।
तरुवर की तुम लता सुहानी
लिपटी बनकर प्यार ।