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|रचनाकार=रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
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<poem>

नज़र टिकी हो उजियारे पर
सम्बन्धों में आँच हो,
चाहे बोलियाँ अटपटी हों
मन में केवल साँच हो।
माथे पर हो
चमक भोर की
घिरे हों लाख अभाव में।

मिलकरके जब बैठेंगे सब
दर्द पास न आएँगे,
पथ में जितने शूल बिछे हों
वे फूल बन जाएँगे ।

मुस्कानों से
होम करें हम
सारी पीर अलाव में।
-0-25-11-2022


</poem>