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जब तक साँस
एक भी बाकी
सिर पर है
तपता आकाश
कहाँ ठहरना
कैसी छाया
जब तक जीवित
मन की प्यास
चलना है, बस चलना है ।
नहीं गुलाम
बहारों के हम
नफरत कैसी
फिर पतझर से
तूफानों से
डरना कैसा
निकल पड़े हैं
हम जब घर से
चलना है, बस चलना है
-0'''-(रचना-20-7-93, प्रकाशन-अमृत सन्देश 20 मार्च 94,संगम अप्रैल 94, आकाशवाणी अम्बिकापुर से प्रसारण-31-10-98)
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