भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
अब वह मिट्टी का ढेला है जमा हुआ ।
यहाँ गरमी के मौसम की तरह नाजुक नाज़ुक उछलती हो तुमचाकुओं के बीच उज्‍जवल उज्‍ज्वल लपटों की तरह
यहाँ आर-पार गुजरते तारों के बादल हैं
और मृतकों के हाथ से गिर पड़ी है ध्‍वजा ।
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
53,606
edits