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{{KKRachna
|रचनाकार=रामावतार त्यागी
}}
आने पर मेरे बिजली-सी कौंधी सर्फ़ तुम्हारे दृग में, <br />
लगता है जाने पर मेरे सबसे अधिक तुम्हीं रोओगे !<br /><br />
मैं आया तो चारण-जैसा <br />
गाने लगा तुम्हारा आँगन;<br />
हँसता द्वार, चहकती ड्योढी <br />
तुम चुपचाप खड़े किस कारण ?<br />
मुझको द्वारे तक पहुंचाने सब तो आए, तुम्हीं न आए,<br />
लगता है एकाकी पथ पर मेरे साथ तुम्हीं होओगे !<br /><br />
मौन तुम्हारा प्रश्न चिन्ह है,<br />
पूछ रहे शायद कैसा हूँ ?<br />
कुछ कुछ चातक से मिलता हूँ -<br />
कुछ कुछ बादल के जैसा हूँ; <br />
मेरा गीत सुना सब जागे, तुमको जैसे नींद आ गई,<br />
लगता मौन प्रतीक्षा में तुम सारी रात नहीं सोओगे!<br /><br />
तुमनें मुझे अदेखा कर के <br />
संबंधों की बात खोल दी;<br />
सुख के सूरज की आंखों में-<br />
काली काली रात घोल दी;<br />
कल को गर मेरे आँसू की मंदिर में पड़ गई जरुरत -<br />
लगता है आँचल को अपने सबसे अधिक तुम ही धोओगे !<br /><br />
परिचय से पहले ही, बोलो,<br />
उलझे किस ताने बाने में ?<br />
तुम शायद पथ देख रहे थे,<br />
मुझको देर हुई आने में ;<br />
जगभर ने आशीष पठाए, तुमनें कोई शब्द न भेजा,<br />
लगता तुम मन की बगिया में गीतों का बिरवा बोओगे!<br />
{{KKRachna
|रचनाकार=रामावतार त्यागी
}}
आने पर मेरे बिजली-सी कौंधी सर्फ़ तुम्हारे दृग में, <br />
लगता है जाने पर मेरे सबसे अधिक तुम्हीं रोओगे !<br /><br />
मैं आया तो चारण-जैसा <br />
गाने लगा तुम्हारा आँगन;<br />
हँसता द्वार, चहकती ड्योढी <br />
तुम चुपचाप खड़े किस कारण ?<br />
मुझको द्वारे तक पहुंचाने सब तो आए, तुम्हीं न आए,<br />
लगता है एकाकी पथ पर मेरे साथ तुम्हीं होओगे !<br /><br />
मौन तुम्हारा प्रश्न चिन्ह है,<br />
पूछ रहे शायद कैसा हूँ ?<br />
कुछ कुछ चातक से मिलता हूँ -<br />
कुछ कुछ बादल के जैसा हूँ; <br />
मेरा गीत सुना सब जागे, तुमको जैसे नींद आ गई,<br />
लगता मौन प्रतीक्षा में तुम सारी रात नहीं सोओगे!<br /><br />
तुमनें मुझे अदेखा कर के <br />
संबंधों की बात खोल दी;<br />
सुख के सूरज की आंखों में-<br />
काली काली रात घोल दी;<br />
कल को गर मेरे आँसू की मंदिर में पड़ गई जरुरत -<br />
लगता है आँचल को अपने सबसे अधिक तुम ही धोओगे !<br /><br />
परिचय से पहले ही, बोलो,<br />
उलझे किस ताने बाने में ?<br />
तुम शायद पथ देख रहे थे,<br />
मुझको देर हुई आने में ;<br />
जगभर ने आशीष पठाए, तुमनें कोई शब्द न भेजा,<br />
लगता तुम मन की बगिया में गीतों का बिरवा बोओगे!<br />