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{{KKRachna
|रचनाकार=रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
}}
[[Category:बाल-कविताएँ]]
<poem>
भूली बात पसीने की
ठण्डा शर्बत पीने की।
सर्दी की मजबूरी है
ठिठुर-ठिठुरकर जीने की।
सबको भाती मूँगफली
गूँज उठी है गली-गली।
भाया गाजर का हलुआ
गर्म पकौड़ी लगी भली।
छाँव न तनिक सुहाती है
धूप हमें सहलाती है।
कभी दुबकती गोदी में
दूर कभी भग जाती है।
'''(नवभारत बिलासपुर, 26 जनवरी1997)'''
</poem>
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|रचनाकार=रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
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भूली बात पसीने की
ठण्डा शर्बत पीने की।
सर्दी की मजबूरी है
ठिठुर-ठिठुरकर जीने की।
सबको भाती मूँगफली
गूँज उठी है गली-गली।
भाया गाजर का हलुआ
गर्म पकौड़ी लगी भली।
छाँव न तनिक सुहाती है
धूप हमें सहलाती है।
कभी दुबकती गोदी में
दूर कभी भग जाती है।
'''(नवभारत बिलासपुर, 26 जनवरी1997)'''
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