गृह
बेतरतीब
ध्यानसूची
सेटिंग्स
लॉग इन करें
कविता कोश के बारे में
अस्वीकरण
Changes
मुर्गे / बरीस पास्तेरनाक/ अनिल जनविजय
6 bytes added
,
09:31, 24 अगस्त 2023
बारी-बारी से इन सालों में बीते अन्धेरे को धुनता हूँ
ये गुज़रे साल कुछ तो कहेंगे, बतलाएँगे बदलाव की बात
वर्षा, धरती
और
औ’
प्रेम
सहित कब सबका बदलेगा
सहित सबका बदल जाएगा
रे
ये
गात !
1923
अनिल जनविजय
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
54,461
edits