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कितने अधिक माहों, कितने अधिक वर्षों का विस्तार
दिवसों के मुहाने पर कबसे मेरी आत्मा है खड़ी
विश्वासघाती धुंध में तनावग्रस्त धुंधली आँखें बडी़
समीप और दूर जीवन प्रारंभ होने के संकेत लिए साकार
मात्र परछाई सी पसरी हुई है भूरे रंग की नीहार
आशाओं की सीमाओं से परे व्यतीत हुए मार्गों में पड़ी
मेरी दृष्टि को प्रतीत होते पीत पिशाचों की टोली उड़ी
आसन्न आशा और भय की पूर्व सूचनाओं की भरमार।
अत्यंत लज्जाजनक होता व्यापक शक्ति का व्यर्थ क्षरणअंततः जीवन उठ खड़ा होगा निश्चित कहा मैंने स्पष्टसंभोग की इतिश्री मुझे बुहार कर ले जायेगा लीला और आनंद से रतिक्रिया अंत तक वासना रहे पासनिर्मम कामुकता कराती वचन भंग, दोषारोपण, लाती मरणअसभ्य, अतिरंजित, जंगली, जिस पर न हो सकता विश्वास ।किंतु मेरे यह कहते ही विस्फोट से कंपित हुआ अपशिष्ट।
सुखानुभूति उपरांत अविलम्ब उपजाती अप्रिय विरक्तिपूर्व में खोजी जाती व्यग्रता चीत्कार और कोलाहल पूर्ण रोमांचकारी द्वंद से, लक्ष्य सिद्धि उपरांतहोती कारक घृणा कापतित हुई रात्रि मुझ पर, ज्यों मत्स्य की प्रलोभन अनुरक्तिजो जाल बिछाया जाता प्राप्त कर्ता को करने अशांत । अनुसरण और प्राप्ति में करती है ये वासना उन्मत्तपाकर, पाते हुए और पाने की खोज में टूटती हर सीमासब शांत अंतर्द्वन्द सेप्राप्ति कराती स्वर्गीय अनुभूतिएक मंद स्वर ने कहा मुझसे, लाती व्यथा हो कर प्रदत्तपूर्व में संभावित आनंद, समाप्ति पर शेष रहता स्वप्न धीमा। विश्व को बीता है सर्व विदित, फिर भी कोई न जान पाता!त्याग देता मनुज स्वर्ग जो इसे नर्क द्वार तक ले जाता।।जीवन होकर नष्ट।।
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