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बिन जिया जीवन (लाइफ अनलिव्ड सॉनेट / जॉन पायने / विनीत मोहन औदिच्य

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कितने अधिक माहों, कितने अधिक वर्षों का विस्तार
दिवसों के मुहाने पर कबसे मेरी आत्मा है खड़ी
विश्वासघाती धुंध में तनावग्रस्त धुंधली आँखें बडी़
समीप और दूर जीवन प्रारंभ होने के संकेत लिए साकार
मात्र परछाई सी पसरी हुई है भूरे रंग की नीहार
आशाओं की सीमाओं से परे व्यतीत हुए मार्गों में पड़ी
मेरी दृष्टि को प्रतीत होते पीत पिशाचों की टोली उड़ी
आसन्न आशा और भय की पूर्व सूचनाओं की भरमार।

अंततः जीवन उठ खड़ा होगा निश्चित कहा मैंने स्पष्ट
मुझे बुहार कर ले जायेगा लीला और आनंद से
किंतु मेरे यह कहते ही विस्फोट से कंपित हुआ अपशिष्ट।

चीत्कार और कोलाहल पूर्ण रोमांचकारी द्वंद से
पतित हुई रात्रि मुझ पर, हुए सब शांत अंतर्द्वन्द से
एक मंद स्वर ने कहा मुझसे, बीता है जीवन होकर नष्ट।।

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