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21:28, 4 फ़रवरी 2024 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=रसूल हम्ज़ातव
|अनुवादक=मदनलाल मधु
|संग्रह=
}}
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<poem>
अपनी धरती के बारे में
कहना चाहा बहुत, नहीं कुछ भी कह पाया,
भरी खुरजियाँ संग लिए हूँ
हाय मुसीबत, मैं तो उनको खोल न पाया !
अपनी भाषा में दुनिया का
गाना चाहा गीत, मगर मैं गा न पाया,
लादे हूँ, सन्दूक पीठ पर
हाय मुसीबत, ताला पर न खुला खुलाया !
'''रूसी भाषा से अनुवाद : मदनलाल मधु'''
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