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दुनिया लगे है तब से टूटा हुआ खिलौना।
खेले न इस से कोई इससे, फेंके न कोई इसको,
यूँ ही पड़ा है कब से टूटा हुआ खिलौना।
बेटा बड़ा हुआ तो यूँ चूमता हूँ उसको,
अकसर अक्सर लगाऊँ लब से टूटा हुआ खिलौना।
बच्चा गरीब ग़रीब का है रक्खेगा ये सँजोकर,
देना जरा अदब से टूटा हुआ खिलौना।
‘सज्जन’ कहे यकीनन यक़ीनन होंगे अनाथ बच्चे,
जो माँगते हैं रब से टूटा हुआ खिलौना।
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