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दिल हो गया है जबसे टूटा हुआ खिलौना / 'सज्जन' धर्मेन्द्र

दिल हो गया है जब से टूटा हुआ खिलौना।
दुनिया लगे है तब से टूटा हुआ खिलौना।

खेले न इस से कोई, फेंके न कोई इसको,
यूँ ही पड़ा है कब से टूटा हुआ खिलौना।

बेटा बड़ा हुआ तो यूँ चूमता हूँ उसको,
अक्सर लगाऊँ लब से टूटा हुआ खिलौना।

बच्चा ग़रीब का है रक्खेगा ये सँजोकर,
देना जरा अदब से टूटा हुआ खिलौना।

‘सज्जन’ कहे यक़ीनन होंगे अनाथ बच्चे,
जो माँगते हैं रब से टूटा हुआ खिलौना।