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तीखी ढलान पर न फिसलती हैं चींटियाँ।
आँचल न माँ का सर पे न साया है बाप का,
जीवन की तेज़ धूप में पलती हैं चींटियाँ।
शायद कहीं मिठास है मुझमें बची हुई,
अकसर अक्सर मेरे बदन पे टहलती हैं चींटियाँ।
</poem>
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