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Kavita Kosh से
वो पगली बुतों में ख़ुदा चाहती है।
उतारू है करने पे सारी ख़ताएँ,
बुझाने क्यूँ लगती है लौ कौन जाने,
न दो दिल के बदले में दिल, बुद्धि कहती,
मुई इश्क़ में भी नफ़ा चाहती है।
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