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तर्क जब से जवाँ हो गए / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
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04:47, 26 फ़रवरी 2024
भाव जाने कहाँ खो गए।
कौन दे
रोज
रोज़
तुलसी को जल,
इसलिए कैक्टस बो गए।
सूर्य खोजा किए रात भर,
थक के वो
हार कर
भोर में सो गए।
जो सभी पर हँसे
ताउमर
उम्र भर
,
अंत में खुद पे वो, रो, गए।
</poem>
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