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हम काफ़िया रदीफ़ -ओ-बहर नाप रहे हैं।वो हैं के पाँव -पाँव शहर नाप रहे हैं।
सब सो रहे हैं चैन से याँ अब ओढ़ के चद्दर,
सरहद पे रात भर वो पहर नाप रहे हैं।
कुछ भूख से मरे तो कई कुछ एक छोड़ गए घर,सूखे का आज भी वो कहर क़हर नाप रहे हैं।
हम तो गए हैं डूबबूड़, मिला पा के आग का दरिया,
दुनिया समझ रही है लहर नाप रहे हैं।
लोकल के इंतजार में टेशन पे खड़े झूटी है न्यूज सब ये जानते हैं मगर हम,सूरज समझ रहा है सहर कितना छुपा ख़बर में ज़हर नाप रहे हैं।
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