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हम काफ़िया रदीफ़ बहर नाप रहे हैं / 'सज्जन' धर्मेन्द्र

हम काफ़िया रदीफ़-ओ-बहर नाप रहे हैं।
वो हैं के पाँव-पाँव शहर नाप रहे हैं।

सब सो रहे हैं चैन से अब ओढ़ के चद्दर,
सरहद पे रात भर वो पहर नाप रहे हैं।

कुछ भूख से मरे तो कुछ एक छोड़ गए घर,
सूखे का आज भी वो क़हर नाप रहे हैं।

हम तो गए हैं बूड़, पा के आग का दरिया,
दुनिया समझ रही है लहर नाप रहे हैं।

झूटी है न्यूज सब ये जानते हैं मगर हम
कितना छुपा ख़बर में ज़हर नाप रहे हैं।