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<poem>
अच्छे अच्छों की जान लेता है।
इश्क इश्क़ जब इम्तेहान लेता है।
बात सबकी जो मान लेता है।
छोड़ सबकुछ मसान लेता है।
वही जीता रहता है इस अब नगर में जो,बेचके बेच कर घर दुकान लेता है।
फ़न वो देता है जिसको जिस को भी सच्चा,पहले उसका उस का गुमान लेता है।
ये निशानी है खोखलेपन की,
जब भी लगता है रोग पैसों का,
सबसे सब से पहले थकान लेता है।
</poem>
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