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धूप से कर छाँव छलनी गर्मियों की ये दुपहरी / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
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26 फ़रवरी
क्यूँ उसे इतना सताती गर्मियों की ये दुपहरी।
आम का
इक
एक
पेड़ अब भी राह मेरी देखता है,
याद मुझको है दिलाती गर्मियों की ये दुपहरी।
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