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Kavita Kosh से
पढ़ता हूँ कर अँधेरा सौ गीत, सौ ग़ज़ल।
देखा है तुझको तुझ को जबसे मेरे मन के आसपास,
डाले हुए हैं डेरा सौ गीत, सौ ग़ज़ल।