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Kavita Kosh से
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साथ चल के भी मिल न पाये हम।
आप थे धूप और साये हम।
दौड़ना तब ही सीख पाये हम।
रोज़ उनसे बढ़े सवाये हम।
यूँ बुलाया के दास हों उनके,
और शिकवा है क्यूँ न आये हम।
या ख़ुदा यूँ न हों पराये हम।
धूल बन आसमाँ पे छाये हम।
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