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<poem>
साथ चल के भी मिल न पाये हम।
आप थे धूप और साये हम।
साल वर्ष दो साल वर्ष लड़खड़ाये हम।
दौड़ना तब ही सीख पाये हम।
रोज़ उनसे बढ़े सवाये हम।
यूँ बुलाया के दास हों उनके,
और शिकवा है क्यूँ न आये हम।
या ख़ुदा यूँ न हों पराये हम।
इस कदर यूँ हमें रौंदती रहीं गईं सदियाँ,
धूल बन आसमाँ पे छाये हम।
</poem>
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