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Kavita Kosh से
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आज नयनों में आग पलने दो।
न बुझाओ चरागचराग़, जलने दो।
आग बुझती न सूर्य के दिल की,
उम्र दिन एक से हैं ढलने दो।
नींद की बर्फ बर्फ़ लहू में पैठी,रात की धूप में से पिघलने दो।
थक गई है ये अकेले चलकर, आज साँसों पे साँस मलने दो।
नीर सा मैं हूँ शर्करा सी तुम,
थोड़ी जो है खटास चलने दो।
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