भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
<poem>
है ये अनुभव की बात माना कर।
लाल चश्मा पहन के कोई भी,
है ये आब-ए-हयात माना कर।
तम से डर-डर के जी न पायेगा, रोज रोज़ होती है रात माना कर।
</poem>