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<poem>
है ये अनुभव की बात माना कर।
झूठ झूट खाता है मात माना कर।
लाल चश्मा पहन के कोई भी,
है ये आब-ए-हयात माना कर।
तम से डर-डर के जी न पायेगा, रोज रोज़ होती है रात माना कर।
</poem>
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