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आज क्यों भीगी अँखियन कोर!
रह-रह कर मन हुआ विकल
पीर बढ़ रही है पल-पल
सुप्त व्यथाएँ जाग उठीं
हृदय में मचता कैसा शोर!
आज क्यों भीगी अँखियन कोर!
बाहर कलरव अंतर में रव
फीका लगता सारा वैभव
मन में पारावार उमड़ता
नयन जब उठें चाँद की ओर !
आज क्यों भीगी अँखियन कोर!
आज सुरभि पहचानी लगती
मंद बयार सुहानी बहती
अलि बता वे मुझे याद कर
क्या कभी होते भाव विभोर!
आज क्यों भीगी अँखियन कोर!
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