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मुझमें कुछ ऐसी बात कहाँ
जो मुझको याद करे ये जहाँ

आयी हूँ जग में कुछ पल को
जाना होगा फिर से कल को
वो दृष्टि हटाता न पल को
मर्जी से उसकी चले जहाँ
मुझमे कुछ ऐसी बात कहाँ...

खेतों में फसलों का जीवन
लहरायेगा कितने ही दिन
पल- पल होता है परिवर्तन
उगती है नित नव पौध यहाँ
मुझमें कुछ ऐसी बात कहाँ....

हँसते-गाते थे जो संग में
ढूँढ़े न मिले वो अब जग में
रह गयी कहानी बस मन में
है देश कहाँ वो गये जहाँ।
मुझमें कुछ ऐसी बात कहाँ..
</poem>