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|संग्रह=फ़िल्म काला पानी / मजरूह सुल्तानपुरी
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<poem>
हम बेख़ुदी में तुमको पुकारे चले गए
साग़र (जाम) में ज़िन्दगी को उतारे चले गए

देखा किए तुम्हें हम बनके दीवाना
उतरा जो नशा तो हमने ये जाना
सारे वो ज़िन्दगी के सहारे चले गए
हम बेख़ुदी में तुमको पुकारे चले गए

तुम तो न कहो हम ख़ुद ही से खेले
डूबे नहीं हमीं यूँ नशे में अकेले
शीशे में आपको भी उतारे चले गए
हम बेख़ुदी में तुमको पुकारे चले गए
</poem>
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