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|रचनाकार=नजवान दरविश
|अनुवादक=मंगलेश डबराल
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<poem>
अक्सर मैं एक पत्थर था
राजगीरों द्वारा ठुकराया हुआ ।

लेकिन विनाश के बाद जब वे आए
थके-मान्दे और पछताते हुए
और कहने लगे ‘तुम तो बुनियाद के पत्थर हो’,
तब तामीर करने के लिए कुछ भी नहीं बचा था ।

उनका ठुकराना
कहीं अधिक सहने लायक था
उनकी विलम्बित मान्यता से ।

'''अँग्रेज़ी से अनुवाद : मंगलेश डबराल'''
</poem>
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