भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
माँ ने स्कूल को जाती हुई बेटी से कहा
तेरी बिंदिया न गिरे देखना पेशानी<ref>माथा</ref> से
मुफ़्त में नेकियाँ मिलती थीं शजर<ref>पेड़</ref> था घर में अब हैं महरूम<ref>वंचित</ref> परिंदों की भी मेहमानी से
रात देखो न कभी दिन का कोई पास रखो