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पहले तो बिगड़े समाँ पर बोलना है / सतीश शुक्ला 'रक़ीब'
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29 जनवरी
<poem>
पहले तो बिगड़े समाँ पर बोलना है
फिर ज़मीनो आसमाँ
बाद में अहले जुबां
पर बोलना है
बोल भी सकता नहीं है ठीक से जो
ख़ामुशी ही से 'रक़ीब' इस बज़्म में अब
ज़िंदगी की दास्तां पर बोलना है
</poem>
SATISH SHUKLA
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