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|रचनाकार=उत्पल डेका
|अनुवादक=नीरेन्द्र नाथ ठाकुरिया
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<poem>
हर बार जब मैं अपने-सामने होता हूँ

मुझे लगता है कि जब भी मैं वापस आऊँगा
खुला रहेगा एक दरवाज़ा
मेरे भीतर
जिससे होकर तुम अन्दर आ सकोगे

मुझे तलाश है
अपनी वाणी की
जो
सदियों से दबी हुई है ।

'''मूल असमिया भाषा से अनुवाद : नीरेन्द्र नाथ ठाकुरिया'''
</poem>
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