हर बार जब मैं अपने-सामने होता हूँ
मुझे लगता है कि जब भी मैं वापस आऊँगा
खुला रहेगा एक दरवाज़ा
मेरे भीतर
जिससे होकर तुम अन्दर आ सकोगे
मुझे तलाश है
अपनी वाणी की
जो
सदियों से दबी हुई है ।
मूल असमिया भाषा से अनुवाद : नीरेन्द्र नाथ ठाकुरिया