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|रचनाकार=गायत्रीबाला पंडा
|अनुवादक=राजेन्द्र प्रसाद मिश्र
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<poem>
बिना किसी हलचल के
साल दर साल

अडिग खड़े रहना ही
हमारा अनोखापन है, एक ने कहा ।

हमारी नग्नता ही
हमारा विरोध है

दूसरे समूह ने कहा ।
उल्लास और आर्तनाद भोगता

बदल चुका पत्थर
आश्चर्य का कारण बनता है

पथिक और पर्यटकों के ।
प्राचुर्य और पश्चाताप से गढ़ा

एक कालखण्ड
क्या हो सकता है कोणार्क ?

समय निरुत्तर है ।

'''मूल ओड़िया भाषा से अनुवाद : राजेन्द्र प्रसाद मिश्र'''
</poem>
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