भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कोणार्क / गायत्रीबाला पंडा / राजेन्द्र प्रसाद मिश्र

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बिना किसी हलचल के
साल दर साल

अडिग खड़े रहना ही
हमारा अनोखापन है, एक ने कहा ।

हमारी नग्नता ही
हमारा विरोध है

दूसरे समूह ने कहा ।
उल्लास और आर्तनाद भोगता

बदल चुका पत्थर
आश्चर्य का कारण बनता है

पथिक और पर्यटकों के ।
प्राचुर्य और पश्चाताप से गढ़ा

एक कालखण्ड
क्या हो सकता है कोणार्क ?

समय निरुत्तर है ।

मूल ओड़िया भाषा से अनुवाद : राजेन्द्र प्रसाद मिश्र