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<poem>
बड़ी ही खूबसूरत थी मसाफत कर नहीं पाए
मगर पत्थर की मूरत थी इबादत कर नहीं पाए

हमें लगता था ये उसको ज़रूरत बस हमारी है
किसी की वह ज़रूरत थी रफाकत कर नहीं पाए

दिलों से खेलना उसका पुराना शौक था सच में
सदा से उसकी आदत थी शिकायत कर नहीं पाए

दिलों के बीच में यूँ ही नहीं आईं दरारें थीं
उसी की ये शरारत थी मलामत कर नहीं पाए

हुई दुनिया में रुसवाई खुला ये राज तो जाना
ये उसकी ही बदौलत थी अदावत कर नहीं पाए

कभी इससे कभी उससे जताने में यूँ ही उल्फत
उसे हासिल महारत थी रकाबत कर नहीं पाए

यूँ ही बर्बाद होना था मुहब्बत में हमें यारो
लगाई ख़ुद ही ये लत थी लियाकत कर नहीं पाए

निभा हम ही नहीं पाए कभी रस्में मुहब्बत की
हमारे सर ये तुह्मत थी हिफ़ाज़तकर नहीं पाए
</poem>
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