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31 मार्च {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=सत्यवान सत्य
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<poem>
गर किसी का तप कभी निष्फल गया है
तो समझ लो भाग्य उसको छल गया है
रात दिन जिसके लिए की हैं दुआएँ
दाँव हम पर वह नया इक चल गया है
भूल से भी भूल पाए हों उसे हम
एक भी ऐसा न अब तक पल गया है
फिर उठा लो हाथ में पत्थर ऐ यारो
इक शजर फिर पास में ही फल गया है
वो गए जब से नहीं है कुछ नया सा
आज भी वैसा है जैसा कल गया है
फिर ग़ज़ल उसने की खारिज इश्क़ की यूँ
फिर उसे इजहारे मिसरा खल गया है
लौट कर आएगा फिर से जलजला ये
मत समझ ख़तरा ये सर से टल गया है
</poem>