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{{KKRachna
|रचनाकार= नाज़िम हिक़मत
|अनुवादक=अनिल जनविजय
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<poem>
मेरे पास
ऐसी काठियों वाले घोड़े नहीं हैं
जिनकी काठियों पर जड़ा हुआ हो
सुनहरा कामदार - बूटियों वाला कपड़ा ।

मैं किसी पुराने
और बड़े ख़ानदान का हूँ
यह शेखी भी
मैं नहीं बघार सकता ।

मेरे पास न धन है
और न जायदाद,
मेरे पास तो है सिर्फ़ एक प्याला शहद
सूरज की तरह सुनहरे रंग का शहद
सिर्फ़ शहद ही है मेरे पास, मेरी सारी सम्पदा ।

जिसे मैं बचा रहा हूँ सारे कीड़े-मकौड़ों से
यही है मेरा खज़ाना और मेरी जायदाद
शहद से लबालब भरा यह प्याला !

मेरे भाई ! इन्तज़ार करो कुछ देर, उम्मीद रखो
बस, मेरे प्याले में बना रहे आग के रंग का यह शहद
तो बग़दाद से भी
आ जाएँगी मधुमक्खियाँ !

१९३२
</poem>
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